क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर टीवी सीरियल्स को डेली सोप क्यों कहते हैं? आज की चर्चा इसी बात पर है कि आखिर हमारे मनपसंद सीरियल्स को सोप (साबुन) से क्यों जोड़ा जाता है.
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इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिए हमें बीसवीं सदी में जाना होगा. बात 1920 के उन दिनों की है, जब रेडियो कंपनियों की हालत खस्ता थी और जिंदा रहने के लिए उन्हें ऐड चाहिए थे. उस ज़माने में ऐड मिलना बहुत मुश्किल था. दुःख की बात ये थी कि ये ऐड ही उनकी कमाई का एकमात्र ज़रिया था.
ऐड न मिलने का सबसे बड़ा कारण लिमिटेड ब्रांड होना था. उस ज़माने में ब्रांड्स की काफी कमी थी. मतलब अगर बाज़ार में शैम्पू होता तो वो एक या दो ही ब्रांड का होता था और सब वही ब्रांड यूज़ करते थे.
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लिमिटेड ब्रांड्स होने के कारण ऐड मिलने में काफी दिक्कतें हो रही थीं. इन रेडियो शोज का मेन टारगेट हाउसवाइव्स थीं. बिना अपने फायदे के कोई ब्रांड पैसे लगाने को तैयार नहीं होता था. इसलिए ज़रूरी था कि फाइनेंस करने वाले ब्रांड्स को ऑडियंस भी जानती हो.
इस दौरान रेडियो एक्सेक्यूटिव्ज़ ने घरेलू प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी को रेडियो शोज फाइनेंस करने के लिए राज़ी कर लिया. क्योंकि इस किस्म की ब्रांड से ऑडियंस अपने आप को बड़ी आसानी से रिलेट कर लेती.
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जो ब्रांड पैसे लगाने को तैयार हुआ, वो था ‘पी एंड जी’. यह ब्रांड अपने प्रतिस्पर्धी ब्रांड ‘ओक्सीडोल’ से आगे निकलने का मौका तलाश रहा था. रेडियो के माध्यम से पब्लिसिटी पाने में इस ब्रांड को बेहेतरीन मौका दिखा. ये दोनों ही कंपनी सोप डिटर्जेंट बनाती थीं.
पी एंड जी के लिए इन रेडियो शोज़ में पैसे लगाना काफी फायदेमंद साबित हुआ. रेडियो से पी एंड जी को इतनी कमाई हुई कि इसके बाद ये ब्रांड रेडियो शोज़ फाइनेंस करने के साथ-साथ, प्रोड्यूस भी करने लगी.
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इन सभी शोज़ में ये ब्रांड अपने ऐड डालती और मोटा मुनाफा कमाती थी. रेडियो पर इन फाइनेंस शो को सोप ओपेरा/सोप के नाम से जाना जाने लगा.
कई सालों बाद जब रेडियो को टीवी से रिप्लेस किया गया, तब तक कई ब्रांड्स आ चुके थे और सभी ने टीवी पर ऐड देने को सुनहरा मौका समझा. टीवी पर भी फाइनेंस किये जाने वाले शो को भी डेली सोप ही कहा गया. तो यहाँ से आता है डेली सोप का नाम.
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