नई दिल्ली: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं. जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. पद्म पुराण के अनुसार माघ माह की शुक्ल एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है. इस बार एकादशी 7 फरवरी दिन मंगलवार को पड़ रही है.
इस दिन दिन भगवान विष्णु के अवतार ‘श्रीकृष्ण जी’ की पूजा का विधान है. यह एकादशी सभी पापों को हरने वाली और उतम कही गई है. पवित्र होने के कारण यह उपवासक के सभी पापों का नाश करती है. तथा इसका प्रत्येक वर्ष व्रत करने से मनुष्यों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां तक की इस एकादशी को ब्रह्महत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिलती है.
जया एकादशी की पूजन विधि-
जया एकादशी के व्रत में जगत के पालनहार भगवान श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है. परन्तु जया एकाद्शी में श्री केशव के साथ साथ श्री कृष्ण का भी पूजन करना चाहिए. जिस व्यक्ति को यह व्रत करना हो, उसे व्रत से एक दिन पूर्व स्वयं को मानसिक रुप से व्रत के लिये तैयार करना चाहिए. दशमी तिथि की संध्या में भोजन करने के बाद एकाद्शी तिथि के प्रात:काल में जया एकादशी व्रत का संकल्प लें. सुबह स्नानादि के निवृत होकर और उसके बाद धूप, दीप, फल से पहले श्री कृ्ष्ण जी की पूजा करनी चाहिए. और इसके बाद में श्री विष्णु जी का भी पंचामृ्त से पूजन करना चाहिए.
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पूरे दिन व्रत करें, और रात्रि में जागरण करने का विधि-विधान होता है. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए, पूरी रात्रि जागरण करना शुभ होता है. अगर रात्रि में व्रत करना संभव न हों तो रात्रि में फलाहार किया जा सकता है. द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करने के बाद ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए. और यथा सामर्थय दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए. ऐसा करने से समस्त पापों से आपको मुक्ति मिलेगी.
जया एकादशी की कथा-
एक समय की बात है, इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था. परन्तु उसका मन अपनी प्रिया को याद कर रहा है. इस कारण से गाते समय उसकी लय बिगड गई. इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर उसे श्राप दे दिया, कि तू जिसकी याद में खोया है. वह राक्षसी हो जाए.
देव इन्द्र की बात सुनकर गंधर्व ने अपनी गलती के लिये इन्द्र से क्षमा मांगी, और देव से विनिती की कि वे अपना श्राप वापस ले लें. परन्तु देव इन्द्र पर उसकी प्रार्थना का कोई असर न हुआ. उन्होने उस गंधर्व को अपनी सभा से बाहर निकलवा दिया. गंधर्व सभा से लौटकर घर आया तो उसने देखा की उसकी पत्नी वास्तव में राक्षसी हो गई.
अपनी पत्नी को श्राप मुक्त करने के लिए, गंधर्व ने कई यत्न किए. परंतु उसे सफलता नहीं मिली. अचानक एक दिन उसकी भेंट ऋषि नारद जी से हुई. नारद जी ने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिये माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत और भगवत किर्तन करने की सलाह दी. नारद जी के कहे अनुसार गंधर्व ने एकाद्शी का व्रत किया. व्रत के शुभ प्रभाव से उसकी पत्नी राक्षसी देह से छुट गई.
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