लखनऊ| उत्तर प्रदेश चुनाव में सरगर्मी के बीच इस बात की चर्चा है कि क्या महिलाओं को देश के सबसे बड़े राज्य में पूरा प्रतिनिधित्व मिल पाएगा?
वर्ष 1952 से लेकर पिछले विधानसभा चुनाव तक के आंकड़ों पर गौर करने पर ऐसा लगता है कि विधानसभा की कुल सीटों के अनुपात में 33 फीसदी महिलाओं को न तो टिकट मिलता है और न ही वे चुनाव नहीं जीत पाती हैं।
हालांकि महिला संगठनों का मानना है कि चुनाव में ‘धनबल’ और ‘बाहुबल’ के इस्तेमाल बढऩे से महिलाओं की विधानसभा में पहुंचना मुश्किल हो गया है।
आधी आबादी के हक को लेकर तमाम राजनीतिक दल बड़े बड़े दावे करते हैं लेकिन चुनाव के समय उनके दावे मूर्त रूप नहीं ले पाते हैं।
हाल यह है कि आजादी के बाद पहली बार पिछले विधानसभा चुनाव में 35 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुई थीं।
महिला प्रतिनिधियों की कम संख्या होने की वजह बताते हुए विश्व नारी अभ्युदय संगठन की अध्यक्ष रीता जायसवाल कहती हैं, चुनाव में धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल होता है और ऐसा करने में महिलाएं पीछे रह जाती हैं।
साथ ही पुरुष प्रधान समाज में वे इन सब चीजों से लड़ भी नहीं पाती हैं। वह यह भी कहती हैं कि टिकट पाने के लिए जुगाड़ लगाना पड़ता है।
यही कारण है कि टिकट पाने वाले ज्यादातर महिलाएं राजनीतिक परिवार या राजघराने की होती हैं। समाजिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए राजनीति की राह आसान नहीं है।
आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 1952 के चुनाव में 20 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचने में कामयाब हुई थीं। इसके बाद विधानसभा में महिलाओं की संख्या में थोड़ा ही बदलाव देखने को मिला।
हालांकि इस दौरान वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ और उनकी संख्या 31 तक पहुंच गई। लेकिन अगले कई चुनावों में उनकी संख्या घटती रही।
वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में केवल 14 महिलाएं जीतकर विधानसभा में पहुंची थीं। इसके बाद 1996 में उनकी संख्या बढक़र 20 हो गई थी।
वर्ष 2002 के चुनाव में 26 महिलाएं, वर्ष 2007 के चुनाव में 23 महिलाएं और 2012 के चुनाव में सबसे अधिक 35 महिलाएं विधानसभा पहुंचने में कामयाब रही थीं।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। ज्यादातर पार्टियां अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर चुकी हैं। लेकिन उप्र में राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकट देने से परहेज ही किया है।
महिलाओं की बात करने वालीं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इस बार 403 सीटों में केवल 20 सीटों पर ही महिलओं को उतारा है।
हालांकि पिछले चुनाव में बसपा ने 33 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें केवल तीन महिलाएं ही चुनाव जीत पाई थीं। उधर, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने इस चुनाव में 31 महिलाओं को टिकट दिया है।
हालांकि पिछले चुनाव में सपा ने 34 महिलाओं को मैदान में उतारा था, जिनमें 22 महिलाएं विधानसभा में पहुंचने में कामयाब हुई थीं।
इस बार गठबंधन के बावजूद सपा ने जहां 25 महिलाओं को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने अब तक केवल छह महिलओं को ही टिकट दिया है।
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