बिजनौर। केन्द्र सरकार हो या प्रदेश सरकार सभी बच्चों को शिक्षित करने का ढिंढोरा पीट रही है और करोड़ों रुपये सरकारें विज्ञापनों पर खर्च कर रही हैं। किंतु इस प्रकार का कहीं कोई असर होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। श्रम विभाग कुंभकर्णी नींद सोया हुआ है और नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों मासूम बच्चे ई-रिक्शा चलाकर अपना तथा अपने परिवार का पेट पालने में जुटे हुए हैं।
सैकड़ों मासूम बच्चे शहर में रिक्शा चलाने को मजबूर
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि गरीबी ने मजदूरों तथा गरीबों की कमर तोड़कर रख दी है। नोटबंदी से लोगों के कारोबार चौपट हो चुके हैं। मजदूर मजदूरी ढूंढे या फिर घर के खर्च के लिये बैंकों की लाइनों में लगकर दो हजार रुपये निकालकर लाए और परिवार का पेट पाले। इसी कारण नोटबंदी के कारण बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है सैकड़ों मासूम बच्चे शहर में रिक्शा चलाने को मजबूर है।
परिवार का पेट पालने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा
आखिर परिवार का पेट तो पालना ही है। कब वो दिन आये या हमारे देश में जब हर घर का बच्चा शिक्षा ग्रहण करने स्कूल जायेगा। कब इन मासूम बच्चों के हाथ काम करने की बजाए कलम थामें हमारे देश में सफेदपोश नेता अधिकारी अगर प्रचार और ढोंग बंद करके लगने से बच्चों की शिक्षा पर जोर दें तभी बच्चों का उद्धार हो सकेगा।
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