इसमें शक नहीं कि पंजाब ड्रग कारोबार और उसकी खपत का गढ़ बनता जा रहा है. आरोप राज्य सरकार पर है कि उसने ड्रग माफियाओं को संरक्षण दे रखा है. सरकार इसकी वजह से राजनीतिक तूफान का सामना भी कर रही है ख़ासकर आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर.
1.30 फीसदी टेस्ट पॉजीटिव
इस आंकड़े के आधार पर सहोटा ने उन आरोपों को झूठा बताया है जिसमें 70 से 80 फीसदी पंजाबी युवाओं को नशे का लती बताया गया था. सिर्फ़ 0.65 फीसदी अभ्यर्थियों ने ही शारीरिक परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए ड्रग का सेवन किया था.
हालांकि इन युवाओं को अधिकारियों ने सात दिन बाद भर्ती परीक्षा में फिर से हाज़िर होने की इजाज़त दे दी गई और ज़्यादातर का टेस्ट निगेटिव रहा. वहीं विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार इस आंकड़े का हवाला देकर राज्य में ड्रग की बुराई होने से इनकार कर रही है.
बताया जा रहा है कि भर्ती के दौरान 6,558 उम्मीदवारों में से 1,775 डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए. इन्होंने चरस का सेवन किया था. फेल होने वाले 1,372 उम्मीदवारों ने बेंजोडियाजेपीन और 1,238 ने मॉर्फीन ले रखी थी. इसके अलावा 388 उम्मीदवारों ने हेरोइन और ओपियम जैसी ड्रग्स का सेवन किया था.
डोप टेस्ट में जो उम्मीदवार फेल हुए हैं, उनमें ज्यादातर फाजिल्का और पटियाला के थे. विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकार ऐसे किसी भी उम्मीदवार को अपने पुलिस बल में शामिल नहीं कर सकती जो नशे के लती हों. पूर्व पुलिस
महानिदेशक (डीजीपी) एस एस विर्क कहते हैं कि हमने इस दिशा में अपना मन तभी बना लिय़ा था जब राज्य में आतंकवाद खत्म हुआ था.
पुलिसबल करता है सेवन
मीडिया रिपोर्ट्स भी कहती हैं कि पुलिस विभाग ने विभाग में नशा मुक्ति का अभियान चला रखा है. हाल ही में लगभग 15 पुलिसवालों ने मुक्तसर में 10 दिन तक चले नशा मुक्ति शिविर में भाग लिया है. ऐसे ही अभियान अन्य जिलों में भी चलाए रहे हैं. हालांकि कैच न्यूज से बातचीत में अफ़सर इन मीडिया रिपोर्टों को मनगढ़ंत बता रहे हैं.
पूर्व पुलिस महानिदेशक शशिकांत के मुताबिक 2009-10 में पुलिस का एक आंतरिक अध्ययन कराया गया था. इसमें ऐसे पुलिसवालों के बारे में पता चला था जो ड्रग्स का लती होने के नाते बीमारियों से पीड़ित थे. कुछ पुलिसवालों ने कम गुणवत्ता वाली स्मैक, पोस्ता दाना और फार्मास्युटिकल ड्रग्स ले रखी थी.
हालात सुधरेंगे
उन्होंने पुलिस भर्ती में डोपिंग टेस्ट की पहल को बेहतर कदम बताया है. पटियाला में पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. राजवन्त सिंह कहते हैं कि पुलिसवालों में इस तरह के टेस्ट हर पांच साल पर हो सकते हैं. यह हर लिहाज़ से मददगार होगा क्योंकि एक बार पुलिस बल में भर्ती हो जाने के बाद उनका मेडिकल परीक्षण कभी नहीं कराया जाता.
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