नयी दिल्ली। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत नौ संगठनों ने समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए शरीया कानूनों को ही जारी रखने की वकालत की है और कहा है कि वे इस संबंध में विधि आयोग की प्रश्नावली का जवाब नहीं देंगे। आॅल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के नेतृत्व में आज यहां आयोजित संवाददाता सम्मेलन में इन सभी संगठनों के प्रतिनिधियों ने पत्रकारों के सामने अपना आक्रोश जाहिर किया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है खिलाफ!
गौरतलब है कि विधि आयोग ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के सिलिसले में लोगों से उनकी राय मांगी है। संवाददाता सम्मेलन में पर्सनल लॉ बोर्ड के रहमानी के अलावा जमायते उलेमाए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी और पूर्व उपाध्यक्ष मोहम्मद जफर, मरकजी जमायते अहले हदीस के मौलाना असगर इमाम मेहदी सल्फी, इत्तेहादे मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खान, आल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव डा़ एम मंजूर आलम, आल इंडिया मजलिसे मुस्लिम मशावरत के अध्यक्ष नावेद हमीद और दारुल उलूम देवबंद के रेक्टर अब्दुल कासिम नोमानी एवं शिया जामा मस्जिद, कश्मीरी गेट के इमाम मौलाना मोहसिन तकवी भी मौजूद थे।
इन मुस्लिम संगठनों की ओर से जारी संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गयी। रहमानी ने कहा,“हम लोग विधि आयोग द्वारा तैयार की गयी प्रश्नावली को खारिज करते हैं और हम इसका कोई जवाब नहीं देंगे। इतना ही नहीं हमने मुस्लिम समुदाय से यह भी अपील की है कि वे विधि आयोग की इस प्रश्नावली का बहिष्कार करें।
उन्होंने कहा कि विधि आयोग की इस प्रश्नावली का वास्तविक मकसद मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करना है और यह प्रश्नावली लोगों को भ्रमित करने के लिए तैयार की गयी है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 का उल्लेख कर समान नागरिक संहिता को संवैधानिक दर्जा देने की कोशिश की गयी है, जो नीति निर्देशक तत्वों के खिलाफ है और इसे लागू नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संविधान के मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 25 के तहत हर व्यक्ति को अपने मन पसंद धर्म को चुनने, उसका प्रचार करने और उसे अपनाने का अधिकार है।
समय-समय पर अदालतों ने भी अपने फैसलों में कहा है कि व्यक्ति का मौलिक अधिकार सर्वोच्च है। अगर केन्द्र सरकार नीति निर्देशक तत्व को लागू करने के लिए वाकई गंभीर है ताे उसे सबको शिक्षा देने, सबको स्वास्थ्य सुविधाएं देने और नशाबंदी को लागू करना चाहिए, जो सीधे जनता की बेहतरी के लिए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह धारणा भ्रामक है कि समान नागरिक संहिता से राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाया जा सकता है और देश की प्रगति तथा विकास संभव है।
Facebook
Twitter
Google+
RSS