देहरादून: उत्तराखंड में क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू करने के मामले में राज्य सरकार एक बार फिर से निजी डॉक्टरों व अस्पतालों के दबाव के आगे नतमस्तक नजर आ रही है। आमजन को निजी अस्पतालों की मनमानी से निजात दिलाने में उत्तराखंड पहले से ही ढाई वर्ष की देरी कर चुका है।
विधानसभा में एक्ट पास करने के बाद जैसे-तैसे लागू कराने की बारी आई, तो फिर से सरकार के हाथ-पैर फूलने लगे। हैरत यह है कि जिन प्राईवेट अस्पतालों, क्लीनिक व नर्सिंग होम की मनमानी पर अंकुश लगाने के प्रावधान इस एक्ट में किए गए, सरकार अब उन्हीं प्राईवेट डाक्टरों से एक्ट में संशोधन करने के लिए सुझाव मांग रही है।
केंद्र सरकार द्वारा करीब तीन वर्ष पूर्व ही क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट पारित कर दिया गया था। चूंकि स्वास्थ्य कान्करेंट सूची का विषय है, लिहाजा स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से पारित हुए इस एक्ट को लागू करना राज्य सरकारों के लिए भी बाध्यकारी है।
यह दीगर बात है कि उत्तराखंड सरकार ने केंद्र द्वारा पारित इस एक्ट को विधानसभा में पारित कराने व लागू करने में करीब ढाई वर्ष से भी ज्यादा वक्त लगा दिया। दरअसल, एक्ट में प्राईवेट अस्पतालों, डाक्टरों और नर्सिंग होम आदि की मनमानी पर अंकुश लगाने के कई कड़े प्रावधान शामिल हैं।
मसलन, समस्त अस्पतालों, क्लीनिक व नर्सिंग होम आदि के लिए इस एक्ट के तहत न सिर्फ पंजीकरण कराना अनिवार्य है, बल्कि चिकित्सा उपचार संबंधी हर सेवा के शुल्क भी मानकों के अनुरूप तय करने होंगे।
इतना ही नहीं, प्राईवेट अस्पतालों आदि को अपने डाक्टर व अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की योग्यता के प्रमाण पत्र भी पंजीकरण के वक्त प्रस्तुत करने जरूरी हैं। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध जुर्माने व अन्य दंड के भी प्रावधान एक्ट में किए गए हैं। यही वजह है कि निजी अस्पतालों व डाक्टरों का कुनबा शुरुआत से ही एक्ट के सख्त प्रावधानों के विरोध में लामबंद रहा।
निजी डाक्टरों के दबाव के कारण सुस्त पड़ी राज्य सरकार की नींद उस वक्त खुली, जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रदेश में जल्द एक्ट लागू न करने पर केंद्रीय मदद बंद करने की चेतावनी दी।
बहरहाल, एक्ट पारित होने के बाद नियमावली भी बना ली गई, मगर इसके अनुपालन की शुरुआत में ही निजी अस्पतालों के दबाव के आगे एक बार फिर राज्य सरकार नतमस्तक नजर आ रही है। अब एक्ट में फेरबदल की तैयारी शुरू हो गई है। साथ ही, एक्ट में संशोधन के लिए भी सरकार उन्हीं प्राईवेट डाक्टरों व अस्पतालों की राय मांग रही है, जिनकी मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए एक्ट बनाया गया।
10 नवंबर को होगी बैठक
सरकार ने क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू करने के लिए 26 सितंबर तक का वक्त तय किया था, मगर निजी अस्पतालों के दबाव के बाद अस्पतालों का पंजीकरण ही रोक दिया गया। अब एक्ट के मानकों में बदलाव के लिए सरकार ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से सुझाव मांगे हैं। इसके लिए आगामी 10 नवंबर की तिथि तय की गई है।
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