सतलुज यमुना लिंक नहर के मामले में पंजाब को अह्म राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट के माननीय जस्टिस पिनाकी चंद्रा घोष और माननीय जस्टिस श्री अमितव राय के आधारित बैंच ने 15 जनवरी, 2002 को सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण के लिये दिये आदेश और फैसले को अमल में लाने के लिये हरियाणा द्वारा दी दलील पर आज और आगे कोई निर्देश नही दिये।
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क्या है सतलुज यमुना लिंक नहर का मामला?
इस बात की जानकारी देते हुये राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने आज यहां बताया कि पंजाब राज्य द्वारा पेश हुये सीनियर वकीलों ने अपना मज़बूत पक्ष रखते हुये कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘पंजाब टर्मीनेशन ऑफ वॉटर एग्रीमैंटस एक्ट-2004’ बिना संदेह तर्कसंगत है और उसको पूरी अहमियत और सम्मान देना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि इस संबंधी ना तो भारत के राष्ट्रपति और ना ही इस विवाद में शामिल सभी पक्ष इसके पालन के लिये पाबंद हैं। सुप्रीम कोर्ट की राय 2004 के पंजाब एक्ट को रद्द नही कर सकती जोकि एक वाजि़ब कानून है और सैंविधानिक तौर पर रूपमान है।
सतलुज यमुना लिंक नहर के संबंध में कानूनी पक्ष सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर आधारित विस्तार में तैयार किये इस केस को सुप्रीम कोर्ट के बैंच आगे रखा गया। इस दौरान वकीलों द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि मौजूदा नदी जल की कमी के कारण पंजाब द्वारा 2003 में दर्ज करवाई शिकायत पर केंद्र द्वारा अभी तक इसके निपटारे के लिये ट्रिब्यूनल नही स्थापित किया गया।
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सुप्रीम कोर्ट के बैंच आगे पंजाब का पक्ष सीनियर एडवोकेट श्री आर एस सूरी द्वारा पेश किया गया। बैंच ने इस केस की अगली सुनवाई 28 मार्च, 2017 निर्धारित की है जिस दौरान आरंम्भिक और बुनियादी मुद्दों संबंधी राष्ट्रपति के हवालों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौजूदा कार्रवाई को लागू करने के अतिरिक्त वर्तमान मुकद्दमें बाजी में सभी पक्षों की सुप्रीम कोर्ट की इस राय के प्रति पाबंदगी संबंधी सुनवाई होगी।
सर्वोच्च अदालत ने पंजाब की तरफ से सीनियर वकील श्री राम जेठ मलानी, सीनियर वकील श्री आर एस सूरी, सीनियर वकील श्री अरूण कथपालिया, एडवोकेट श्री मोहन वी कतारकी, ए औ आर श्री जगजीत सिंह छाबड़ा एडवोकेट श्री विनय के शैलेंद्र और एडवोकेट लता कृष्णामूर्ति पेश हुये। अदालत में अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व, गृह और सिंचाई) श्री के बी एस सिद्धू और सलाहकार श्री एम आर गोयल, मुख्य अभियंता (सेवा निवृत) ने कानूनी विशेषज्ञों की टीम की सहायता की।
यह जिक्रयोग्य है कि पंजाब के मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव और सिंचाई विभाग को राज्य के हितों की रक्षा को यकीनी बनाने के लिये सभी प्रयास करने से पूर्व ही निर्देश दिये हुये हैं क्योंकि राज्य के पास पानी देने के लिये एक भी बूंद अतिरिक्त नही।
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