उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब दो चरण शेष हैं. राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. उत्तर प्रदेश विधानसभा का ये चुनाब अब जबकि पूर्वांचल में प्रवेश कर गया है तो एक प्रश्न उठाना लाजिमी है. ये प्रश्न है नक्सलवाद पर विश्वसनीयता का है. नक्सल प्रभावित तीन जिलों चंदौली, मीरजापुर और सोनभद्र में मतदान से पहले पुलिस ने यहां के मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए पूरा जोर लगा दिया है. पुलिस हालांकि इनका विश्वास जीतने में कितना कामयाब होगी, वह मतदान के बाद पता चलेगा, जिसमें नक्सली मतपेटी में अपने ‘विश्वास की पर्ची’ डालेंगे.
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विश्वास की पर्ची के सहारे पुलिस
चुनावी माहौल में प्रत्याशियों की ओर से अक्सर पर्ची और पम्फलेट बांटे जाते हैं, लेकिन उप्र के नक्सल प्रभावित इन तीन जिलों में तस्वीर इससे बिल्कुल उलट है. यहां प्रत्याशियों का अता-पता नहीं है बल्कि जिले के पुलिस कप्तान दल बल के साथ मतदाताओं के घर जरूर पहुंचकर उनमें विश्वास जागृत करने का कार्य कर रहे हैं.
पुलिस को अपनी चौखट पर देख एक बार तो मतदाताओं के होश उड़ जाते हैं, लेकिन जैसे ही उनके हाथ में पुलिस की ओर से छपवाई गई विश्वास की पर्ची आती है तो उन्हें सुकून का अहसास भी होता है. चुनावी मौसम में पुलिस नक्सल प्रभावित इलाकों में विश्वास बहाली का गहन अभियान चला रही है.
उप्र में तीन जिले नक्सलवाद से प्रभावित माने जाते हैं. चंदौली में सात पुलिस थानों के लगभग 241 गांवों में नक्सलियों की काली छाया है, तो मीरजापुर में छह थानों के लगभग 150 गांव नक्सलवाद प्रभावित हैं. सोनभद्र में तो 17 पुलिस थानों के लगभग 300 गांव नक्सलवाद की काली छाया की चपेट में हैं.
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सोनभद्र के नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इस हकीकत से रूबरू कराया. उन्होंने बताया कि किस तरह से पुलिस नक्सल प्रभावित इलाकों में अपना अभियान चला रही है और मतदाताओं में वोट डालने का भरोसा पैदा कर रही है.
उन्होंने कहा, “पुलिस ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. आठ मार्च को मतदान के दिन किसी भी स्थिति से निपटने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात होगा. इन इलाकों में मतदान के दिन तीन हेलीकॉप्टरों के माध्यम से निगरानी रखी जाएगी.”
पुलिस अधिकारी ने कहा, “नक्सल प्रभावित इलाकों में क्रिटिकल श्रेणी में रखे गए सभी बूथों पर निगरानी के लिए ड्रोन कैमरों की मदद ली जाएगी. जिन इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है, उन्हें शैडो एरिया माना गया है. यहां पर सुरक्षा बल वायरलेस फ्रीक्वेंसी सिस्टम पर काम करेंगे.”
नक्सल प्रभावित इलाकों में मतदान का समय अन्य जगहों की अपेक्षा एक घंटा पहले ही समाप्त हो जाएगा, ऐसा इसलिए ताकि पोलिंग पार्टियां दिन रहते ही मतदान समाप्त कर बैलेट बॉक्स लेकर निर्धारित स्थानों तक पहुंच जाएं.
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इधर, सोनभद्र के अलावा चंदौली में भी पुलिस नक्सलियों से निपटने के लिए मुस्तैद है. चंदौली की पुलिस अधीक्षक दीपिका तिवारी की ओर से नक्सल प्रभावित गांवों में ‘विश्वास की पर्ची’ नाम से एक पत्र बांटा जा रहा है.
विश्वास की इस पर्ची के बारे में दीपिका कहती हैं, “इस पर्ची को लेकर पुलिस घर-घर पहुंच रही है. इस पर्ची में भयमुक्त होकर मतदान करने और नक्सलियों सहित किसी के भी तरफ से मताधिकार से वंचित करने का प्रयास करने वालों की जानकारी देने की अपील की गई है. इस पर्ची के पीछे जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और थाने के नंबर भी दिए गए हैं.”
पुलिस ने लगभग 100 नक्सलियों की एक सूची तैयार की है. इनमें से करीब 35 नक्सली अभी जमानत पर हैं, उन सभी पर कड़ी नजर रखी जा रही है. वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भी नक्सलियों ने पोलिंग पार्टियों पर हमला किया था, लेकिन उसमें कोई हताहत नहीं हुआ था.
चंदौली में कनवा गांव के 70 वर्षीय सीताराम सोनकर ने कहा कि बहुत पहले इलाके में नक्सलियों की धमक हुआ करती थी, जिसमें अब कमी आई है, लेकिन बिहार के बार्डर से सटा होने की वजह से खतरा हमेशा बना रहता है.
उन्होंने कहा, “हमने वह दौर देखा है, जब इलाके के कई गांवों में आए दिन नक्सलियों की आहट सुनाई देती थी. भय और आतंक की वजह से कई परिवार पलायन कर गए. लेकिन पिछले एक दशक से स्थिति बदली है. इसमें पुलिस ने भी लोगों की काफी मदद की है. पुलिस की ओर से ये पर्ची पहली बार नहीं बांटी जा रही है. ऐसा हमेशा ही चुनाव के समय में होता आया है.”
सोनकर का कहना है कि इस बार नक्सलियों की तरफ से किसी तरह की पर्ची लोगों के बीच नहीं बांटी गई है, जबकि दो दशक पहले ऐसा हुआ करता था.
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