जिंदगी अनमोल होती है और उसे बचाने के लिए आयुष्मान योजना से लेकर मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराने तक के सरकार के निर्देश हैं। इसके विपरीत शहर के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज के लाला लाजपत राय अस्पताल (एलएलआर-हैलट) में जीवन रक्षक दवाएं खत्म हो गई हैं। खरीद के लिए एक महीने पहले शासन को भेजा गया प्रस्ताव अभी भी लटका है। इन दवाओं का इस्तेमाल दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल और ऑपरेशन के दौरान होता है।
यही नहीं, ‘आयुष्मान भारत’ के तहत इलाज कराने वाले मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदने पड़ रही हैं। वह सस्ती दवाएं भी नहीं खरीद सकते हैं, क्योंकि एलएलआर परिसर में संचालित अमृत फार्मेसी में इनके अलावा साधारण दवाओं की भी कमी है। वहीं, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज प्रशासन का तर्क है कि पर्याप्त बजट न होने से सभी मरीजों को दवा मुहैया कराना संभव नहीं है।
यह इंजेक्शन खत्म
ऑपरेशन में प्रयुक्त होने वाला एंटीबायोटिक इंजेक्शन एमाक्सीक्लेव 1.2 एमजी, दुर्घटना ग्रस्त मरीजों के इलाज व ऑपरेशन में जरूरी दर्द निवारक इंजेक्शन डेक्लोनेक, ऑपरेशन थियेटर और इमरजेंसी में झटके आने पर बेहोशी के लिए लगाया जाने वाले डायजापाम और इप्सोलिन फेनाटाइन सोडियम इंजेक्शन, दिल की धड़कन चलाने के लिए लगाया जाने वाला एट्रोपिन इंजेक्शन
जो इंजेक्शन बचे वह भी महज 15 दिन चलेंगे
अस्पताल के मुख्य औषधि भंडार में हाई एंटीबायोटिक इंजेक्शन का स्टॉक भी केवल 15 दिन का बचा है। इसमें पिपरासिलिन टैजोवेक्टम, सिफेक्सॉन, लिंजोलिड, सिफापराजोन सेलवेक्टम 1.5 एमजी इंजेक्शन शामिल हैं। इंजेक्शन खरीद की अनुमति मिलने के बाद कंपनियां एक माह में आर्डर भेजती हैं। यानी आज अनुमति मिलती है तो भी इंजेक्शन आने में एक महीना लगेगा। यानी हालात बिगडऩे तय हैं।
इतनी है रोजाना दवाओं की खपत
अस्पताल में रोजाना 400 से 500 वॉयल डेक्लोनेक, 150 से 200 वॉयल एट्रोपिन, 100 वॉयल कैल्शियम ग्लुकोनेट, 250 वॉयल एमाक्सीक्लेव, 400 वॉयल इप्सोलिन फेनाटाइन सोडियम की खपत है। यहां हमेशा करीब 1000 मरीज भर्ती रहते हैं, वहीं 150 मरीज की औसत इमरजेंसी में आते हैं और 4500 मरीज की औसतन ओपीडी होती है। इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर देहात, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, उन्नाव, हमीरपुर, महोबा, बांदा, जालौन आदि जिलों से मरीज आते हैं।
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