नई दिल्ली । हिंदू धर्म में पूजा करने के दौरान मंत्रों के सही उच्चारण का न होना बहुत ही अशुभ माना जाता है। सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं और इनके लाभ और फायदे भी अलग होते हैं। मंदिर हो या आरती के बाद शिव मंत्र ‘कर्पूरगौरं’ का जाप होते आपने अक्सर सुना होगा। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है भगवान शिव के इस मंत्र का जाप आरती के बाद करना क्यों जरूरी है।
जानें पूरा शिव मंत्र…
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।
शिव मंत्र का अर्थ…
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं– करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं– समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम्– इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है। मंत्र का पूरा अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
आरती के बाद क्यों है मंत्र का इतना महत्व….
किसी भी पूजा के पहले जैसे भगवान गणेश की स्तुति की जाती है। उसी तरह किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं….मंत्र का जाप करने का अपना महत्व है। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है। शिव शंभू की इस स्तुति में उनके दिव्य रूप का बखान किया गया है। शिव को जीवन और मृत्यु का देवता माना गया है। इसी के साथ इन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है।
जीवन को सुखमय बनाता है यह मंत्र
पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। इसीलिए इस स्तुति का पाठ आरती के बाद किया जाता है और प्रभु से प्रार्थना की जाती है कि वह हर प्राणी के मन में वास करें। इसी के साथ हमारे मन से मृत्यु का भय दूर करके हमारे जीवन को सुखमय बनाए रखें।
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