लखनऊ: वास्तु एक ऐसा माध्यम है जिसके सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है। आज आपको वास्तु सम्मत से जुडी कुछ उपयोगी जानकारी देने जा रहे हैं जिसका पालन कर आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। आजकल हर घर में भगवान का मंदिर होता है लेकिन यदि वास्तु को ध्यान में रखते हुए मंदिर को घर में स्थापित किया जाये तो हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है।
किस दिशा में हो पूजा का स्थान
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में पूजा का स्थान ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। वास्तुशास्त्र में पूजा घर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान ईशान कोण को ही बताया गया है क्योकि इसी दिशा में ईश अर्थात भगवान का वास होता है तथा ईशान कोण के देव गुरु वृहस्पति ग्रह है जो की आध्यात्मिक ज्ञान का कारक भी हैं। सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी इसी दिशा से होता है। जब सर्वप्रथम वास्तु पुरुष इस धरती पर आये तब उनका शीर्ष उत्तर पूर्व दिशा में ही था यही कारण यह स्थान सबसे उत्तम है।
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यदि किसी कारणवश ईशान कोण में पूजा घर नहीं बनाया जा सकता है तो विकल्प के रूप में उत्तर या पूर्व दिशा का चयन करना चाहिए और यदि ईशान, उत्तर और पूर्व इन तीनो दिशा में आप पूजा घर बनाने में असमर्थ है तो पुनः आग्नेय कोण दिशा का चयन करना चाहिए भूलकर भी केवल दक्षिण दिशा का चयन नहीं करना चाहिए क्योकि इस दिशा में यम अर्थात नकारात्मक ऊर्जा का स्थान है।
इसके अलावा इन बातों का भी रखें ध्यान
इसके अलावा हमेशा यह भी ध्यान रखें कि घर में मंदिर सीढ़ियों के नीचे मंदिर नहीं बनाना चाहिए। शौचालय या बाथरूम के बगल में या ऊपर नीचे भी पूजा घर नहीं बनाना चाहिए। मंदिर कभी भी शयनकक्ष या बेडरूम में नहीं होना चाहिए। बेसमेंट भी पूजा घर के लिए ठीक नहीं है। यदि इन स्थानो में पूजा घर बनाते है तो घर में अकारण ही क्लेश होता है तथा आर्थिक हानि भी होती है। घर का स्वामी खुशी जीवन व्यतीत नहीं कर पाता है।
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