केंद्र सरकार ने साफ कह दिया है कि इससे बेहतर प्रस्ताव वो किसानों को नहीं दे सकते हैं। सरकार ने MSP की गारंटी को लेकर एक समिति गठित करने का प्रस्ताव भी रखा, जिसे किसानों ने नामंजूर कर दिया। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। अब गेंद किसानों के पाले में है। वहीं इस पूरे मसले पर किसान नेताओं का कहना है कि सरकार की ओर से कोई प्रगति सामने नहीं आई है।
नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, “कोई ना कोई ताकत है जो किसान आंदोलन को बनाए रखना चाहती है। यह आंदोलन किसानों का है और सरकार किसानों के हित की बात करना चाहती है, लेकिन किसान यूनियनों के साथ बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रही है, तो इसका मतलब है कि कोई ना कोई ताकत है जो अपने हित के लिए किसान आंदोलन को बनाए रखना चाहती है।”
कृषि मंत्री का इशारा वामपंथी दलों समेत पूरे विपक्ष की तरफ था। केंद्र सरकार ने किसानों को नए कृषि कानून के अमल पर डेढ़ साल तक रोक लगाने एक समिति बनाकर आंदोलन से जुड़े सभी पहलुओं का समाधान तलाशने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन किसानों द्वारा इस प्रस्ताव को नामंजूर करने और नए कृषि कानून को निरस्त करने की मांग पर वार्ता बेनतीजा रही। हालांकि अगले दौर की वार्ता के लिए कोई तारीख मुकर्रर नहीं की गई है, लेकिन कृषि मंत्री ने कहा की किसान यूनियनों को सरकार द्वारा दिए गए प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया है और यह कहा गया है कि अगर वे इस प्रस्ताव पर बात करने के लिए तैयार होते हैं तो कल भी सरकार के साथ बातचीत हो सकती है।
किसान यूनियनों के साथ वार्ता में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश भी मौजूद थे।
तोमर ने कहा कि, “पिछली बैठक में काफी देर तक चर्चा करने के बाद सरकार की ओर से किसान संगठनों के समक्ष एक ठोस प्रस्ताव रखा गया था, जिसमें सरकार ने सुधार कानूनों के क्रियान्वयन को एक से डेढ़ साल तक स्थगित करने की बात कही थी और इस दौरान किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधि किसान आंदोलन के मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श करके उचित समाधान पर पहुंच सकते हैं।”
उन्होंने कहा, ‘सरकार की तरफ से लगातार आंदोलनकारी किसान संगठनों से बातचीत का क्रम जारी रखा गया और बार-बार यह अनुरोध किया गया कि सरकार खुले मन से उनके द्वारा उठाये जाने वाले सभी मुद्दों पर संवेदनशीलता से तथा व्यापकता से विचार करने को तैयार रही है। सरकार द्वारा प्रस्ताव दिये गये, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि कृषि सुधार कानूनों में कोई खराबी थी, फिर भी आंदोलन तथा आंदोलनकर्ता किसानों का सम्मान रखने के लिए और उनके प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए ये प्रस्ताव दिए गए।’
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